बेरोजगारी (Unemployment)
वह व्यक्ति जो बाजार में प्रचलित मजदूरी दर पर काम करना चाहता है लेकिन काम नहीं मिलता बेरोजगार कहलाता है!
Unemployment in India |
- जॉन मेनार्ड केंस (John Maynard Keynes) सर्वप्रथम बेरोजगारी की व्याख्या की तथा 1936 में प्रकाशित पुस्तक जनरल थ्योरी ऑफ एंप्लॉयमेंट इंटरेस्ट एंड मनी (General Theory of Employment Interest & Money) में बेरोजगारी का सिद्धांत दिया था!
- किसी देश की श्रम शक्ति से अभिप्राय उन व्यक्तियों से है जो 15 से 65 आयु वर्ग के हैं जो रोजगार में है या रोजगार की तलाश में हैं!
- 8 घंटे प्रतिदिन काम के साथ 273 दिन को स्टैंडर्ड वर्ष करते हैं तथा इसे पूर्ण रोजगार भी कहा जाता है!
भारत में बेरोजगारी का स्वरूप
1. संरचनात्मक बेरोजगारी:- औद्योगिक क्षेत्रों में संरचनात्मक परिवर्तन के फल स्वरुप उत्पन्न होने वाली बेरोजगारी को संरचनात्मक बेरोजगारी कहते हैं! संरचनात्मक बेरोजगारी दीर्घकालीन होती है! भारत में बेरोजगारी का स्वरूप इसी प्रकार का है!
2. अदृश्य बेरोजगारी या छिपी हुई बेरोजगारी या प्रछन्द बेरोजगार:- इसके अंतर्गत श्रमिक बाहर से तो काम पर लगे हुए प्रतीत होते हैं किंतु वास्तव में उन श्रमिकों की उस कार्य में आवश्यकता नहीं होती है तथा उन श्रमिकों को उस कार्य से निकाल दिया जाए तो उस कार्य पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता अर्थात सीमांत प्रभाव या सीमांत उत्पादन शून्य होता है! कृषि क्षेत्र में इस प्रकार की बेरोजगारी पाई जाती है!
3. खुली बेरोजगारी:- इसके अंतर्गत श्रमिकों को बिना किसी कामकाज के रहना पड़ता है या उन्हें थोड़ा बहुत काम मिल जाता है! बहुत से श्रमिक गांव से शहर की तरफ रोजगार के लिए आते हैं लेकिन काम ना मिलने से बेरोजगार रह जाते हैं! इसके अंतर्गत शिक्षित बेरोजगार और अशिक्षित बेरोजगार दोनों आते हैं!
4. शिक्षित बेरोजगारी:- शिक्षित बेरोजगार ऐसे श्रमिक है जिन को शिक्षित करने के लिए संसाधन उपलब्ध कराई जाती है तथा उनकी कुशलता भी अन्य श्रमिकों से अधिक होती है किंतु अपनी योग्यता के अनुसार कार्य नहीं पाते हैं वर्तमान में देश के सामने शिक्षित बेरोजगारों की समस्या सबसे बड़ी है!
5. घर्षणात्मक बेरोजगारी या चक्रीय बेरोजगारी:- बाजार की दशाओं में परिवर्तन (मांग और पूर्ति में परिवर्तन) से उत्पन्न बेरोजगारी को घर्षणात्मक बेरोजगारी कहते हैं! कृषि एक मुख्य व्यवसाय है! देश की अधिकांश कृषि प्रकृति पर निर्भर करती है अतः इस प्रकार बाजार की मांग देश में उपलब्ध साधनों पर निर्भर करता है! इसकी उपलब्धता से मांग पक्ष प्रभावित होता है!
6. मौसमी बेरोजगारी:- इसके अंतर्गत किसी विशेष मौसम या अवधि में प्रति वर्ष उत्पन्न होने वाली बेरोजगारी को शामिल किया जाता है! भारत में कृषि में सामान्य 7 से 8 माह ही काम चलता है!
7. शहरी बेरोजगारी:- शहरी क्षेत्रों में प्रायः खुले किस्म की बेरोजगारी पाई जाती है! इसमें औद्योगिक व शिक्षित बेरोजगारी को शामिल किया जाता है!
Post a Comment
Thanks for your comments.